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हिंदी कहानियाँ





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                            कोशिश

  कहानी है एक राजा की जो अपनी जनता को यह सिखाना चाहता था, कि कैसे कोशिश करने वालों की ज़िन्दगी में धीरे धीरे ही सही पर आखिरकार सब कुछ अच्छा हो ही जाता है!

एक बार राजा राज्य में घुमने के लिए निकला, उसने यह देखने के लिए एक बड़े से पत्थर को रास्ते के बिच में रखवा दिया की कौन इस पत्थर को उठा कर रस्ते से अलग करता है| राजा ने पत्थर को रास्ते के बिच रखवा दिया, और दूर से देखने लगा की कौन इस पत्थर को रास्ते से अलग करता है|  राजा ने देखा की काफी  लौग उस रास्ते से गुज़रे,  कुछ लोगों को पत्थर से ठोकर भी लगी लेकिन वो उस पत्थर को उठा कर रास्ते से अलग करने की बजाए, पत्थर को रास्ते के बिच रखने वालों को बुरा-भला कह कर कर आगे बड गए| किसी ने भी उस पत्थर को रास्ते से अलग नहीं किया| तभी वहां से एक किसान गुज़रा, किसान ने देखा की एक बड़ा सा पत्थर रास्ते के बिच पड़ा है और आने जाने वाले राहगीरों को उस पत्थर से काफी परेशानी का सामना करना पड रहा है| किसान ने बड़ी मशक्कत से उस पत्थर को उठा कर रास्ते से अलग किया, लेकिन जब वो वापस आया तो उसने देखा की जिस जगह पत्थर पड़ा था, वहां एक थैली पड़ी है| उसने थैली को खोल कर देखा, उसमे सोने की अशर्फियाँ और एक पत्र पड़ा था| किसान ने पत्र पढ़ा, उसमे राजा ने लिखा था, कि वो देखना चाहता था की कौन इस पत्थर को उठाने की कोशिश करता है और अपने भाग्य को बदल सकता है!

दोस्तों, हमारी ज़िन्दगी में भी एक वक्त ऐसा आता है, जब एक पत्थर हमारी कामियाबी के बिच पड़ा होता है, लेकिन हम उस पत्थर को उठाने की हिम्मत नहीं कर पाते!  विधाता हर इन्सान को अपना भाग्य बदलने का एक मौका अवश्य देता है, ज़रूरत है तो बस उसे पहचान कर सही कदम उठाने की!

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      💠🌟  सफलता  🌟💠
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एक बार एक लड़का गर्मी की छुट्टियाँ बिताने अपने दादाजी के पास गाँव आया| एक दिन जब वह अपने दादाजी के साथ बता था तो उसने अपने दादाजी से एक सवाल पूछा, कि  “सफलता का राज़ क्या है…

इस पर दादाजी ने उसे पास ही की एक नर्सरी में जाकर वहां से दो पौधे खरीद लाने को कहा| उन्होंने एक पौधा घर के अन्दर और एक पौधा घर के बाहर लगाने को कहा| उस लड़के ने ऐसा ही किया| बाद में दादाजी ने अपने पोते से पूछा “तुम्हे क्या लगता है, इन पौधों में से सबसे अधिक सफल कौन होगा| लड़के ने जवाब दिया,  कि घर के अन्दर जो पौधा लगाया है वो ज्यादा सफल  होगा क्यों की वो प्राकृतिक खतरों से बचा रहेगा जबकि बाहर जो पौधा लगाया गया है उसको काफी चीजों से खतरा है| दादाजी अपने पौते की बात सुनकर मुस्कुरा दिए| कुछ दिनों बाद लड़का वापस शहर चला गया|

कुछ साल बाद जब वह लड़का वापस दादाजी से मिलने अपने गाँव आया तो उसने अपने दादाजी से पौधों के बारे में पूछा| दादाजी ने उसे घर के अन्दर लगाया गया पौधा दिखाया, वह पौधा अब एक बहुत बड़ा पौधा बन चूका था| लड़के ने अपने दादाजी की और देखते हुए कहा “मैंने  कहा था ना, कि यही पौधा ज्यादा सफल होगा| वैसे बहार वाले पौधे का क्या हुआ ?

दादाजी उसे बहार लेकर आए तो लड़का हैरान रह गया| बहार वाला पौधा अब एक विशाल पेड़  का रूप ले चूका

था| उसने दादाजी से पूछा कि यह कैसे संभव है की बाहर वाला पौधा एक बड़ा पेड़ बना गया और अन्दर वाला पौधा उतना विकसित नहीं हो पाया जबकी अन्दर वाला पौधा प्राकृतिक खतरों से सुरक्षित था| दादाजी ने उसे बताया की “जीवन में खतरों से झूझकर ही सफलता हासिल होती है, सफलता का राज़ यही है”

कहानी का तर्क यही है….कि मुश्किलों का सामना करने वालों को ही सफलता मिलती है! इसीलिए कहा गया है!
लहरों से डरकर नदियाँ पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती||
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                                     💠🌟 राजा और बंदर 🌟💠

         एक बार एक राजा था। उसके पास एक बंदर था जो उसका सबसे अच्छा मित्र था।

     राजा का मित्र होने पर भी वह बंदर बहुत ही मुर्ख था। राजा का प्रिय होने के कारन उसे महल के हर जगह जाने की अनुमति थी बिना कोई रोक टोक। उसे शाही तरीके से महल में इज्ज़त दी जाती थी और यहाँ तक की वह राजा के कमरे में भी आराम से आ जा सकता था जहाँ राजा के गोपनीय सेवकों को भी जाना मना था।

       एक दिन दोपहर का समय था। राजा अपने कमरे में आराम कर रहे था और बंदर भी उसी समय पास के गद्दे में बैठ कर आराम कर रहा था। उसी समय बंदर ने देखा की एक मक्खी आकर राजा के नाक में बैठा। बंदर में एक तौलिया से उस मक्खी को भगा दिया। कुछ समय बाद वह मक्खी दोबारा से आ कर राजा के नाक पर आ कर बैठ गयी। बंदर नै दोबारा उसे अपने हांथों से भगा दिया।

       थोड़ी देर बाद बंदर नें फिर से देखा वही मक्खी फिर से आकर राजा के नाक पर बैठ गयी है। अब की बार बंदर क्रोधित हो गया और उसने मन बना लिया की इस मक्खी को मार डालना ही इस परेशानी का हल है।

      उसने उसी समय राजा के सर के पास रखे हुए तलवार को पकड़ा और सीधे उस मक्खी की और मारा। मक्खी तो नहीं मरा परन्तु राजा की नाक कट गयी और राजा बहुत घायल हो गया।

कहानी से शिक्षा :-
मुर्ख दोस्तों से सावधान रहें। वे आपके दुश्मन से भी ज्यादा आपका नुक्सान कर सकते हैं।

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                   ●कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है●

      एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था । चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को , जहाँ भी इस में कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे ।जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी । यह देख वह बहुत दुखी हुआ । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे
        वह दुःखी बैठा हुआ था ।तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे ।
उसने अगले दिन यही किया ।
          शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया ।वह संसार की रीति समझ गया ।

सिख :- "कमी निकालना , निंदा करना , बुराई करना आसान हैलेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है।


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                           ●शेर और ऊँट●

        चिंदरबन के घने जंगल में, एक शक्तिशाली शेर अपने तीन सहाय्यक सियार, कौवा और तेंदुए के साथ रहता था – जंगल के राजा के एकदम निकट होने के कारण, उन सहायकों को कभी भोजन की तलाश नहीं करनी पड़ी और वह थोड़े चापलूस थे। शेर को अपनी तरफ से हमेशा खुश रखने की पूरी कोशिश करते थे। इधर-उधर की बाते करते थे, शेर की हमेशा तारीफ और वाहवा करते थे।

एक दिन क्या हुआ सियार, कौवा और तेंदुआ जंगल में इधर उधर घूम रहे थे, उन्होंने जंगल में एक ऊँट को पेड़ की पत्तियां खाते देखा। वे ऊँट को जंगल में देखकर आश्चर्यचकित हुए, जो आम तौर पर ऊँट रेगिस्तान में रहते है।  उन्होंने जंगल में पूछताछ करने पर, उन्हें पता चला कि ऊँट अपना रास्ता भटककर जंगल में आया है। उन तीनो ने जाकर शेर को बताया की जंगल में एक ऊँट भटक कर आया है। उस पर शेर ने उन्हें आदेश दिया की वह हमारा मेहमान है, उसे हम हमारे यहाँ आश्रय देंगे।

एक दिन जंगल में शेर की हाथियों के साथ जोर से लड़ाई हुई उस लड़ाई में शक्तिशाली शेर घायल हो गया। घायल होने के कारन दूर जाकर शिकार करने में उतनी उसमे शक्ति नहीं बची थी। शेर को और उसके सहाय्यकों को अब बहुत भूख लगी थीं। सियार, कौवा और तेंदुआ ने शेर को सुझाव दिया कि उन्हें ऊँट मारकर खाना चाहिए,हमे ज्यादा कष्ट नहीं होगी शिकार करने में। लेकिन शेर ने इसे मारने से इनकार कर दिया। और कहा ऊँट तो हमारा मेहमान है हम उसे नहीं मर सकते।

         उस पर तीनो थोड़े उदास हो गए और उन्होंने एक योजना बनाई अगर हम खुद को शेर को खाने के लिए पेश करेंगे तो हमारा देखकर ऊँट भी शेर के खाने के लिए खुद को पेश करेगा। और कौवा, तेंदुए और सियार ने खुद को शेर के लिए भोजन के रूप में पेश किया और कहा,  “महाराज आप हमे खा लीजिये, लेकिन शेर ने उन्हें मारकर खाने से इनकार कर दिया और कहा, “तुम तीनो तो हमारे पुराने सहाय्यक को मैं तुम्हे नहीं मार सकता “ यह देखकर, ऊँट ने भी वही किया और कहा महाराज आप मुझे खा लीजिये, मै वैसे भी भटककर इस जंगल में आया था” तभी शेर ने सोचा भूख तो बहुत लगी है ऊँट तो भटक कर यहाँ आया इस जंगल का नहीं है, इसे मार के हम भूख मिटा सकते है। और तुरंत शेर ने ऊँट को मार गिराया और सबकी भूख मिटा दी। और सियार, कौवा और तेंदुआ अपनी योजना में सफल हो गए।

बोध: शक्तिशाली लोगों के पीछे अपने फायदे के लिए घूमने वाले चालाक लोगों पर भरोसा करना मूर्खता होती है।



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                       ●बन्दर और पच्चर●

        एक व्यापारी था जिसने अपने बगीचे में एक मंदिर बनाने के लिए कई सुतार बुलाये थे। रोज सुबह वह काम के लिए आते थे और मध्य-भोजन के लिए छुट्टी लेते थे, और फिर शाम तक काम करते थे। बोध कथा हिंदी में उसी बगीचे के झाड़ियों के पीछे एक बड़ा सा पेड़ था उस पेड़ पर बहुत सारे बंदरों का समूह वहाँ खेलते कूदते रहते थे वह काफी दूर थे। बन्दर रोज लोग क्या कर रहे है वह झाड़ियों से छुपकर देखते थे।  एक दिन एक बंदरों का समूह जहा काम चालू था वहाँ पर आया। और उन्होंने देखा की वहां पर कोई भी मजदूर नहीं है सिर्फ एक मजदूर बड़ा सा लकड़ा आरी से कांट रहा था। जब उसने लकड़ा आधा कटा तभी आधे कटे लकड़ी के बिच में बड़ा सा पच्चर रखा ताकि वह जुड़े नहीं, और वह अपने साथियों के पास भोजन लेने के लिए चला गया।

           जब सभी मजदूर चले गए तब बंदर पेड़ से निचे आ गए और जहाँ काम चल रहा था वहां पर आ गए और वहाँ पर खेल-कूद करने लगे और मजदूरों के हथियारों से खेलने लगे। उनमे से एक बन्दर उस लकड़ी में रखे पच्चर के बारे में उत्सुक था। वह क्या है यह देखने के लिए उतावला था और वह पच्चर निकलने की सोच रहा था। वह बन्दर, बीच में जहा लकड़ी आधी काटी थी उसके ऊपर बैठ गया और उस पच्चर के साथ खेलने लगा, लेकिन उसकी पूछ कटी लकड़ी के बीच में थी।  उस बन्दर ने पच्चर जोर से खींचा और अचानक पच्चर निकल गया और आधी कटी लकड़ी बंद हो गयी उसमे बन्दर की पूछ अटक गयी और वह दर्द से जोर-जोर से चिल्लाने लगा, उसका चिल्लाना सुनकर मजदूर लोग भाग कर आए तब बाकि बन्दर भाग गए. उस अटके हुए बन्दर को उन्होंने निकला और मदारी को बेच दिया।

बोध : बुद्धिमान लोग कहते है जो दूसरे के काम में हस्तक्षेप करते है वह जरूर संकट में आते है।



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                          ●लोमड़ी, वनबिलाव और गरीब खरगोश●

             चिंदरबन के जंगल में एक मीकू नाम का गरीब और मासूम खरगोश पेड़ के तने में एक बिल में रहता था। बहुत मज़े से अकेला रहता था। उसे खाना खाने के लिए थोड़ा दूर जाना पड़ता था क्यों की थोड़े ही दूर एक टीले पर बहुत सारी हरी-भरी घास थी। उसे वहां कोई भी परेशानी नहीं थी। अस-पास भी उसे परेशान करनेवाला नहीं था। सिर्फ एक वन बिलाव को छोड़ के, क्यों की वनबिलाव उसका वहां का एक ही बड़ा दुश्मन था। लेकिन वनबिलाव उसे अकेला मारकर नहीं खा सकता था।

      एक दिन क्या हुआ वह घास खाते-खाते बहुत दूर तक चला गया। वहां उसे बाहर से आई लोमड़ी दिख गई। लोमड़ी ने भी मीकू को देखा और उसका शिकार करने के लिए उसका पीछा करते-करते बिल तक आ पहुंची लेकिन बिल का मुँह बहुत छोटा था, उसे अंदर जाकर शिकार करना मुश्किल था। इसलिए लोमड़ी बिना शिकार किये वहां से चली गयी। अब लोमड़ी हररोज मीकू का शिकार करने के लिए बिल के यहाँ आती थी।

             फिर एक बार मीकू ने देखा की वनबिलाव के साथ वह लोमड़ी बाते कर रही है। मीकू समझ गया की कुछ तो गड़बड़ है, अब उसकी खैर नहीं, मीकू वहां से भाग भी नहीं सकता था। और कुछ ही देर में वह वनबिलाव बिल के अंदर आया और मीकू को अपने पंजो से नोचने लग गया। अब मीकू को अपनी जान बचाने के लिए बिल के बाहर आना ही पड़ा, जैसे ही मीकू बिल के बाहर आया वैसे ही लोमड़ी ने उसे दबोच लिया। और वनबिलाव और लोमड़ी दोनों मिल कर मीकू को खाने लगे बेचारा गरीब मीकू मरते वक्त उनसे बोला, “तुम दोनों में जब दोस्ती हो गयी तभी मैं समझ गया की अब मेरी खैर नहीं।”  और मीकू ने अपना दम तोड़ दिया।

बोध: एक-दूसरे के शत्रु अगर में मिल जाये या दोस्ती कर ले तो किसी गरीब या कमजोर पे आफत आती है।


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                               ●चींटि और कबुतर●

                जंगल में एक छोटे से तालाब के बाहर किनारे में एक चींटियों की बस्ती थी। चींटिया वहां पर हमेशा दिन रात काम ही करती थी। कुछ चींटिया खाना ढूँढकर  आती, और सबको कहती और सभी वह खाना लेकर आते थे। खाना ढूँढने वाली चींटियों में एक रानी नाम की चींटि थी। बहुत अच्छी, दयालु और मेहनती थी।

         एक दिन रानी चींटि सब के लिए खाना तलाश रही थी। वह तालाब के किनारे दूर तक गयी। उसे खाना कही नहीं मिला, रानी खाना तलाशते – तलाशते एक पानी में टूट कर गिरी एक लकड़ी का पूल पर चढ़ गयी, तब एक जोर से हवा का झोंका आया उसमे चींटि उड़कर पानी में जा गिरी और पानी में हवा से लहरे थी उसमे रानी डूबने लगी और बहनें लग गयी। उसी तालाब के बाजु में एक पेड़ पर शिबू नाम का कबूतर बैठा था वह बहुत दयालू था। टहनी पर बैठ कर वह सब देख रहा था, उसे उस चींटि  की दया आयी। और बाजू में से एक पत्ता तोडकर चींटि के पास फेंक दिया, चींटि ने देखा की उसके बाजू में पत्ता गिरा है तुरंत वह उस पत्ते पर चढी और ऊपर देखा तो कबूतर था। कबूतर को रानी ने धन्यवाद किया और वह पत्ते के साथ किनारे पे चली गयी और फिर अपने घर चली गयी।

कुछ दिन बीत गए, उस तालाब के यहां एक शिकारी आया, उसके पास एक बंदूक़ थी। पंछियों की शिकार करने तालाब के पास आया था। उसने देखा की कबूतर एक पेड पर बैठा है। उस शिकरी को बहुत आनंद हुआ और उसने बंदूक का निशाना कबुतर के ऊपर लगाया। रानी चींटि ने यह सब देख लिया और वह अपने दोस्तों को लेके उस शिकारी के यहाँ गयी और वह शिकारी जब गोली मरने वाला ही था, तभी सभी चींटियोने शिकारी के पैर को जोर से काँट लिया इसमे शिकारी का निशाना चुक गया और कबूतर वहाँ से उड़ गया। इस तरह से कबुतर की जान चींटि ने बचा ली और कबुतर को उसके किये अच्छे कर्मो का फल मिल गया।

बोध: किसी को उसके बुरे वक्त में की गयी मदद का फल, कभी न कभी हमारे बुरे वक्त पर भी काम आता है।


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                                       ●चतुर कौआ●

                    एक दिन कल्लू नाम का चतुर कौआ खाने की तलाश में जंगल के बाहर बहोत दूर गया उसे वहां खाना तो मिल गया, उसने पेट भर खाना खा लिया लेकिन उसे पानी पीने को कही नहीं मिला। बहुत देर तक ढूंढा लेकिन पानी का एक भी सुराग नहीं मिला। क्योंकि उसी साल उस प्रदेश में आकाल से सूखा पड़ गया था। कही पानी नहीं था नदी – नाले, तालाब सब सूखे पड़ गए थे। कल्लू को तो बहुत प्यास लगी थी।

             पानी ढूंढ़ते-ढूंढते कल्लू एक घर के पास आ गया वहां घर के बाहर एक बड़ा सा पानी का मटका रखा हुआ था और आजु – बाजू  में बहोत सारे पंछी – चिड़ियाँ प्यासे बैठे थे। कल्लू वहां गया और उनसे पूछा, “क्यों भाइयों मटके में पानी नहीं है क्या?” चिड़ियाँ बोली, “भाई, पानी तो है थोडासा मटके में, लेकिन इतना कम है की हमारी चोंच वहां तक पहुँच नहीं रही है। हम भी सभी प्यासे हैं।”  कल्लू ने थोड़ी देर कुछ सोचा उसे एक तरकीब सूझी उसने आस-पास देखा पत्थर पड़े थे। उसने एक पत्थर उठाया और मटके में डाला पानी थोड़ा ऊपर आया बाद में दूसरा पत्थर डाला पानी और ऊपर आया और ऐसे कल्लू ने एक – एक कर के बहोत सारे पत्थर मटके में डाले। अब पानी से मटका पूरा भर गया और कल्लू ने पेट भर पानी पी कर अपनी प्यास बुझाई  और बाद में बाकि के सभी पंछियों ने पानी से अपनी प्यास बुझाई। सभी ने कल्लू कौए की होशियारी को सराहा और सब की प्यास बुझाने के लिए धन्यवाद दिया।

बोध: अगर चतुराई से कोशिश करे, तो हर समस्या का हल आप चुटकी में निकाल सकते है।
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        ●हाथी और चिड़ियाँ●

        चिंदरबन के जंगल में, एक पेड़ पर चिऊ चिड़ियाँ और उसका पति काऊ दोनों एक साथ, घोंसले में रहते थे। वह दोनों आनंद और सुख से रहते थे। कुछ दिन बाद चिऊ ने अंडे दे दिए। दोनों बहोत ख़ुशी में थे। एक दिन काऊ, चिऊ के लिए भोजन का बंदोबस्त करने गया क्योंकि चिऊ अंडे से ने के लिए बैठी, वो उठ नहीं सकती थी। वही पेड़ के निचे से एक बड़ा हाथी, हररोज तालाब में पानी पिने के लिए जाता था। लेकिन वह बहुत बड़ा और अड़ियल होने से, अजु बाजु के पेड़ पौंधो को नुकसान पहुंचाता था, तभी डरकर कोई उसे बोल नहीं पता था। उस दिन वह हाथी आया और चिऊ जहाँ बैठी थी उस पेड़ पर सूंड मारकर पेड़ हिला रहा था। तब चिऊ ने उसे कहा, “ओ, हाथी भैय्या कृपा करके पेड़ को नुकसान मत पहुँचाना मेरा घोंसला और उसमे मेरे अंडे है।” उसपर हाथी को बहुत गुस्सा आया उसका अहंकार जाग उठा, और चिऊ को बोला, “तुम्हारी इतनी हिम्मत के तुम मुझे बोल रही हो, इतनी पिद्दी सी होकर भी।” और ऐसा कहकर उसने वह पेड़ जोर जोर से हिलाया और वहां से चला गया। लेकिन हाथी ने पेड़ हिलाया, उसमे चिड़ियाँ का घोसला टूट कर सारे अंडे फुट गए, चिऊ जोर से रोने लगी थोड़ी देर में काऊ वहां पर आया और देखा कि अंडे फूटे हुए है और चिऊ रो रही है। उसने चिऊ से पूछा, “किसने किया ये सब” चिऊ ने सारी बात काऊ को बताई। काऊ को भी बहोत दुःख हुआ। फिर दोनों ने उस अहंकारी हाथी को सबक सिखाने की ठान ली।

         फिर चिऊ और काऊ अपने दोस्त मेंढक, कठफोड़वा और एक मधुमख्खी के पास गए और उनको सारी बात बता दी और हाथी को सबक सिखाने में मदद मांगी| उन्होंने भी कहा, ‘उस हाथी से सभी परेशान है उसे सबक सिखाना जरुरी है।’ फिर उन्होंने एक योजना बनाई।

          अगले दिन वो सब हाथी के आने के रास्ते में छुपकर बैठ गए। हाथी का आने का इंतजार कर रहे थे। तभी दूर से हाथी झाड़ियां तोड़ते आ रहा था। फिर मधुमख्खी ने जाकर हाथी के कान में गुनगुनाना शुरू कर दिया। हाथी उस गुनगुनाने में गुम हो गया। तभी कठफोड़वा वहां पर आया और उसने हाथी की आंखे फोड़ दी, हाथी खून से लथपत हो गया। दर्द से चिल्लाने लगा, उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वह तालाब की ओर चला तभी एक हाथी के जितने बड़े आकार के गड्ढे के यहाँ से मेंढक ने आवाज लगायी फिर हाथी को लगा की उस आवाज की ओर तालाब का रास्ता है और हाथी वहां पर चला गया लेकिन वहां उस गड्ढे में जा गिरा। और इस तरह चिऊ और काऊ ने हाथी से अपने दोस्तों का साथ लेकर बदला ले लिया।

बोध: अपने से कम शक्तिशाली लोगों का भी आदर करना सीखो, अपने ही अहंकार में ना रहो। / अच्छी योजना और एकता से हम बड़े से बड़े काम कर सकते है।
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               ●सोने के अंडे देने वाली मुर्गी●

        रामपुर गांव में एक बबन नाम का गरीब किसान रहता था। उसका एक छोटासा फार्महाउस था। उसमे उसने मुर्गियां पाल रखी थी। एक दिन उसकी एक मुर्गी ने एक छोटासा सोने का अंडा दे दिया। बबन को आश्चर्य हुआ उसने वह अंडा लिया और सुनार के पास गया, सुनार ने उसे वह असली सोने का अंडा बताया और खरीद लिया। उसे उसकी अच्छी कीमत मिली बबन आनंद से घर आया और बीवी को घटी सारी बात बता दी। बीवी को भी बहुत आनंद हुआ।

      अब दूसरे दिन बबन फार्महाउस पर गया फिर से उस मुर्गी ने सोने का अंडा दे दिया। और ऐसे हररोज होता गया। अब बबन के घर बरकत आ गयी। उसके पास अब थोड़ासा धन जमा हो गया। अब जैसे धन जमा होता गया वैसे बबन और उसकी बीवी के मन में लालच आता गया। बबन की बीवी बोली, “मुर्गी रोज सोने का अंडा देती है। शायद इसके पेट में पारस (दन्तकथाओं मे पारस एक पत्थर होता है जो किसी भी धातु को छु ले तो वह धातु सोना बन जाता है) होगा, क्यों ना इसे काटकर पेट में से पारस निकाल ले? और अंडे क्या थोड़े ही दिन देगी मुर्गी, उसके बाद वो उसे से ने के लिए बैठेगी तब अंडा नहीं देगी तो हम इसे काटकर पारस ले लेंगे।” मुर्ख बबन को बीवी की बात सही लगी उस ने बीवी की बात मान ली, उसने छुरी ली और मुर्गी को काट डाला लेकिन मुर्गी के पेट से ना पारस निकला और ना अंडे निकले मुर्गी तो मर गयी। अब बबन को बड़ा पश्चाताप हुआ अपनी लालची और मुर्ख बीवी की बात मान लेने की। और दोनों माथा पकड़कर बैठ गए।

बोध: लालच में आ कर या किसी का सुनकर कोई भी फैसला न करें और कोई भी काम करने से पहले अच्छी तरह सोच समझकर विचार करना चाहिये।
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             ●‘एकता की ताकद ‘●

एक बड़े और गहरे समुद्र में बहुत मछलियां थी। उसमें बहोत सारी छोटी -बड़ी मछलिया थी.. वह एक साथ रहती थी और बड़ी मज़े रहती थी सारी मछलियां। उसमे एक लीना नाम की छोटी मछली थी, वह बहुत समज़दार थी सभी मछलियों से उसका अच्छा बर्ताव था, सभी मछलियां उसका कहना भी मानते थे और उसे प्यार भी करते थे। उसकी एक दोस्त थी बड़ी और ताकतवर मछली उसका नाम रानी था। वह ताकदवर होने से थोड़ी घमंडी थी। घमंडी और ताकदवर होने से बाकि की मछलियां उस से डरकर दूर ही रहती थी। एक दिन सब मछलिया पानी में खेल रही थी। तभी लीना सबको बोली “हमें ऐसे ही एक साथ रहना चाहिए।” उस पर रानी बोली, “कोई जरुरत नहीं मैं ताकदवर हु मुझे कुछ नहीं हो सकता। ” लीना, ” ठीक है, तुम्हे कभी न कभी एकता की ताकद की जरूर समझ आ जाएगी।”


और कुछ ही दिनों के बाद उस समुन्दर में कुछ मछुआरों जाल डाला उसमे बहोत सारी मछलियाँ फंस गयी, जाल में रानी मछली भी थी और बची मछलियों में लीना थी वह जाल के बाहर थी। जाल के अंदर की मछलिया डर गयी। अब क्या करे रानी भी डर गयी उसने बहोत ताकद लगायी पर जाल जरा भी नहीं हिला।


बहार से लीना को तरकीब सूझी उसने कहा, “सब मछलियां एक हो जाओ और जाल को निचे की ओर धकेल दो ताकि जाल की रस्सी टूट जाये।”


सब मछ्लियों ने लीना की बात मान ली, और जाल को निचे की तरफ ढकेल दिया सब मछलिओं की एकता, वजन और ताकद से वह जाल और रस्सी टूट गयी और सारी मछलिया बच गई उन्होंने लीना को बहुत साडी दुआ दी और इसी तरह रानी को ‘एकता की ताकद ‘ का एहसास हो गया।उसने रानी की माफ़ी मांग ली और लीना ने उसे गले लगा लिया।


सिख:-
तो दोस्तों आप ने देखा की एकता में कितनी ताकद होती है। बड़ी-बड़ी सी मुश्किलें आसानी से पार कर सकते हो।
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                        • संघर्ष •

एक बार एक मूर्तिकार (मूर्ति बनाने वाला) जंगल की और जा रहा था, मूर्तिकार ने देखा की रास्ते में एक पत्थर पड़ा हुआ है ! मूर्तिकार ने सोचा की यह पत्थर मूर्ति बनाने के लिए सबसे अच्छा है| मूर्तिकार ने जैसे ही उस पत्थर पर मूर्ति बनाने के लिए अपना पहला प्रहार किया, पत्थर से आवाज़ आई “नहीं-नहीं मुझे मत काटो मुझे छोड़ दो, मुझ पर इन औजारों से प्रहार मत करो”| मूर्तिकार ने सोचा, चलो इस पत्थर को छोड़ देते हैं  और वो आगे बढ़ गया| आगे मूर्तिकार को एक बड़ा सा पत्थर मिला, मूर्तिकार ने सोचा यह पत्थर मूर्ति बनाने के लिए अच्छा है, मूर्तिकार ने लगभग एक महीने की लगन और  मेंहनत से एक बड़ी ही खुबसूरत मूर्ति बनाई| लेकिन जब वह उस मूर्ति को ले जाने लगा तो वह बहुत भारी थी, मूर्तिकार ने सोचा क्यों ना पास के गाँव से 4-5 लोगों को बुला कर लाया जाए | मूर्तिकार जब पास के गाँव में गया, तो लोगों ने

उससे एक मूर्ति बनाने का आग्रह किया | मूर्तिकार ने कहा की मूर्ति तो तैयार है, जंगल में पड़ी है| गाँव के लौग मूर्तिकार के साथ गए और मूर्ति को ससम्मान ले आए और बड़े ही धूम-धाम के साथ गाँव के मंदिर में उस मूर्ति की स्थापना की| जब मूर्तिकार जाने लगा तो गाँव वालों ने मुतिकर से एक आग्रह और किया, की हमें मंदिर के बहार नारियल फोड़ने के लिए एक पत्थर की और ज़रूरत है| मूर्तिकार को उस पत्थर की याद आई जिसे वो जंगल में ही छोड़ आया था, मूर्तिकार ने गाँव वालो को उस पत्थर के बारे में बताया और गाँव वालों ने उस पत्थर को नारियल फोड़ने के लिए मन्दिर के सामने रख दिया|

एक दिन उस पत्थर ने मूर्ति से पूछा की हम दोनों एक ही जंगल में थे पर फिर भी क्यों लोग तुम्हारी पूजा करते हैं और मैरा उपयोग नारियल फोड़ने के लिए करते हैं! मूर्ति ने कहा की उस दिन अगर तुम मूर्तिकार का पहला प्रहार सह लेते तो आज तुम्हारी भी यहीं पूजा हो रही होती|

कहानी का तर्क यही है, की उस पत्थर की तरह ही हम भी ज़िन्दगी में कुछ बनना तो चाहते हैं लेकिन उसके लिए संघर्ष  नहीं करते! ज़िन्दगी में सफल होने के लिए संघर्ष करना बहुत ज़रूरी है!

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                         • कोशिश •

  कहानी है एक राजा की जो अपनी जनता को यह सिखाना चाहता था, कि कैसे कोशिश करने वालों की ज़िन्दगी में धीरे धीरे ही सही पर आखिरकार सब कुछ अच्छा हो ही जाता है!

एक बार राजा राज्य में घुमने के लिए निकला, उसने यह देखने के लिए एक बड़े से पत्थर को रास्ते के बिच में रखवा दिया की कौन इस पत्थर को उठा कर रस्ते से अलग करता है| राजा ने पत्थर को रास्ते के बिच रखवा दिया, और दूर से देखने लगा की कौन इस पत्थर को रास्ते से अलग करता है|  राजा ने देखा की काफी  लौग उस रास्ते से गुज़रे,  कुछ लोगों को पत्थर से ठोकर भी लगी लेकिन वो उस पत्थर को उठा कर रास्ते से अलग करने की बजाए, पत्थर को रास्ते के बिच रखने वालों को बुरा-भला कह कर कर आगे बड गए| किसी ने भी उस पत्थर को रास्ते से अलग नहीं किया| तभी वहां से एक किसान गुज़रा, किसान ने देखा की एक बड़ा सा पत्थर रास्ते के बिच पड़ा है और आने जाने वाले राहगीरों को उस पत्थर से काफी परेशानी का सामना करना पड रहा है| किसान ने बड़ी मशक्कत से उस पत्थर को उठा कर रास्ते से अलग किया, लेकिन जब वो वापस आया तो उसने देखा की जिस जगह पत्थर पड़ा था, वहां एक थैली पड़ी है| उसने थैली को खोल कर देखा, उसमे सोने की अशर्फियाँ और एक पत्र पड़ा था| किसान ने पत्र पढ़ा, उसमे राजा ने लिखा था, कि वो देखना चाहता था की कौन इस पत्थर को उठाने की कोशिश करता है और अपने भाग्य को बदल सकता है!

दोस्तों, हमारी ज़िन्दगी में भी एक वक्त ऐसा आता है, जब एक पत्थर हमारी कामियाबी के बिच पड़ा होता है, लेकिन हम उस पत्थर को उठाने की हिम्मत नहीं कर पाते!  विधाता हर इन्सान को अपना भाग्य बदलने का एक मौका अवश्य देता है, ज़रूरत है तो बस उसे पहचान कर सही कदम उठाने की!
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